ऐसा लगता था वो हमको घास रहे हैं डाल ॥
हँस-हँस कर करते थे ऐसा मेरा इस्तक़बाल ॥
बेसब्री में ईलू-ईलू मुँह से निकला ज्यों ही ,
उसने ऐसा चाँटा मारा लाल कर दिया गाल ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
2 comments:
हाथ वीणा आसन कमल है,
ज्ञानपूरित है मुखमंडल तेरा
विचरण में तुम हंसवाहिनी,
अब ज्ञानहंस सा प्यार दे।
हे विद्या की देवी मां शारदे।।
अब ज्ञानहंस सा प्यार दे। धन्यवाद ! Shyam Snehi जी !
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