क्या मिलेगा रात-दिन सब छोड़कर पढ़के यहाँ ।।
माँजते बर्तन जहाँ एम. ए. किये लड़के यहाँ ।।1।।
जेब हैं फुलपेंट में उनके कई किस काम के ,
जब टटोलोगे तो पाओगे वही कड़के यहाँ ।।2।।
ढूँढती फिरती हैं नज़रें इक अदद वैकेन्सी ,
उनका दिल तक कर हसीनाओं को ना धड़के यहाँ ।।3।।
कुछ तो छूने के लिए बेताब हैं ऊँचाइयाँ ,
अपने गड्ढों से निकलने लाशों पे चढ़के यहाँ ।।4।।
कुछ क़ुुुसूूर उनका नहीं जो दिन चढ़े तक सोयें वो ,
रात भर जगते हैं तो कैसे उठें तड़के यहाँ ।।5।।
उनका सपना है कि गलियाँ गाँव की समतल रहें ,
जबकि गड्ढों से अटी हैं शहरों की सड़कें यहाँ ।।6।।
पहले थर्राते थे दरवाज़ो शजर तूफाँ से सच ,
खिड़कियाँ क्या अब तो पत्ता तक नहीं खड़के यहाँ ।।7।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
17 comments:
atisundar ...
Nice!
Please, increase font size, letters are too small, so difficult to read clearly.
धन्यवाद ! उदय साहब ।
धन्यवाद ! सिंह साहब ।
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 09/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
aaj ka sach.....
बहुत सुंदर...
रोजगार तलाशते-तलाशते कब उम्र निकल जाती हैं किसी को खबर नहीं लगती .. बड़ी विकट समस्या है ..कुछ सूझता ही नहीं ..
..बहुत बढ़िया सोचने पर मजबूर करती रचना ..
धन्यवाद Rewa जी !
धन्यवाद रश्मि शर्मा जी !
धन्यवाद yashoda agrawal जी !
AK TALKH SACCHAYEE, SUNDAR RACHNA
धन्यवाद madhu singh जी !
धन्यवाद ! कविता रावत जी !
Maruthal ki baten likhteho,
Aankho ki bhasha me pani,
Ganga ki pavan dhara si
Tere jeevan ki yah kahani
sine me tufa bhara hai
Dil pankhuri jaisa komal
Gazalon ki bhasha me jwala
mujh ko hoti hai hairani.
वाह ! धन्यवाद ! Shishirkumar जी !
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