वह मेरा रोज़ का रास्ता है
वहाँ से अलसुबह पैदल गुज़रता हूँ
मॉर्निंग-वाक के लिए
यद्यपि मैं चला जाता हूँ नाक की सीध में
बिलकुल ताँगे के घोड़े की तरह
जो सिर्फ़ सामने देखने के लिए मजबूर होता है
क्योंकि उसकी आँखों के आजू-बाजू
जाने क्या
किन्तु दो अपारदर्शी ढक्कन
या कि पर्दे से लगे रहते हैं
ताकि वह चाह कर भी
दाँये-बाँये नहीं देख सके
मैं स्वयं दाँय-बाँय नहीं देखता
किन्तु मुझे एहसास होता है
मैं बिलकुल सही अनुमान लगा सकता हूँ
और शत-प्रतिशत विश्वास है
कि मेरे वहाँ से गुजरते वक़्त
सभी सुंदर असुंदर
प्रौढ़ और वृद्ध
और नव-युवतियाँ तो सर्वप्रथम
एक-एक कर
सिर झुकाये उठ खड़ी होती हैं
मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता
उन्हे इस तरह डिस्टर्ब करना
किन्तु न मैं उन्हे ऐसा करने को कहता हूँ
और न ऐसा करने को मना कर सकता हूँ
मेरा वहाँ से गुजरना भी एक मजबूरी है
ख़ैर
जब मैं वहाँ से निकल जाता हूँ
याकि उन्हे यह विश्वास हो जाता है कि
अब मैं उन्हे नहीं देख रहा/सकता
वे पुनः अपने काम में जुट जाती हैं
जो भी हो किन्तु
अनिवार्य है प्रत्येक घर में
एक स्वच्छ
शुष्क
शौचालय ।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
5 comments:
Bahv jaruri hai. Govt. ki kai scheme chal rahi hain.
धन्यवाद !Dr Arun Sikarwarजी !
Bahut saph chitrit kiya aapne shvchalay ki jarurat ko.
धन्यवाद ! shishirkumar जी !
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