उनसे रिश्ते सुधर गये होते
॥
ज़ख्म जितने हैं भर गये होते
॥
याद में यूँ न मरते तिल-तिल
के ,
गर बिछड़ते ही मर गये होते
॥
हमको होटल न यूँ लुभा लेती
,
काश हर रोज़ घर गये होते ॥
कौन परिवार पालता सच पे ,
ख़ुद को क़ुर्बाँ जो कर गये
होते ॥
हम भी कर देते जो किया तुमने ,
गर गुनह से न डर गये होते
॥
हम तो हो जाते तुझसे भी काले
,
हम भी कालिख में गर गये होते
॥
नाख़ुदा से ही पार होना था
,
वरना हम ख़ुद ही तर गये होते
॥
होता ग़मनाक गर फ़साना तो ,
अश्क़ अब तक न झर गये होते
॥
( गुनह = पाप )
( गुनह = पाप )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
2 comments:
Khub kaha apne
धन्यवाद ! Rajeshyadav जी !
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