शराबें चूमता फिरता जहर
को चाटता होता ।।
पटक सर अपना दीवारों पे ख़ुद को मारता होता ।।
चले जाने के तेरे बाद ख़ुश हरगिज़ नहीं रहता ,
अगर तुझको हक़ीक़त में वो
बंदा चाहता होता ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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