Sunday, March 10, 2013

मुक्तक : 97 - कर लूँगा हँस के तै



कर लूँगा हँस के तै मैं हर तरह के रास्ते ।।
मैं सोचता था जबकि तुम थे मेरे वास्ते ।।
अब जब अज़ीज़ो ख़ास रहा मैं न तुम्हारा ,
दो डग भी मुझको दो हज़ार मील भासते ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...