Wednesday, March 6, 2013

मुक्तक :84 - अब वो अपने


अब वो अपने मध्य रहा ना आकर्षण ॥
नहीं स्निग्धता बची खुरदुरा है घर्षण ॥
शत्रु बने इससे पहले हम क्यों न करें ?
अपनी व्यर्थ मित्रता का साशय तर्पण ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...