Friday, March 22, 2013

मुक्तक : 124 - गुंजाइशें


( चित्र google search से साभार )

गुंजाइशें बहुत हैं खुराफ़ात की यहाँ ॥
करते हैं बात गूँगे भी बेबात की यहाँ ॥
साँपों से आड़े-टेढ़े लोग रेंगते कई ,
चलने को ज़रुरत नहीं है लात की यहाँ ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

4 comments:

Pratibha Verma said...


बहुत सुन्दर ...
पधारें "चाँद से करती हूँ बातें "

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Pratibha Verma जी !

शिव राज शर्मा said...

सुन्दर

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Shiv Raj Sharma जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...