Sunday, March 10, 2013

मुक्तक : 94 - इस जमाने में हैं



इस ज़माने में हैं कितने ही खड़े लोग पड़े ।।
दिखते बाहर से तर-ओ-ताज़ा पर अंदर से सड़े ।।
क़ीमती सूट बूट बेश क़ीमती टोपी ,
क़द दरख़्त-ए-खजूर दिल हैं चूहों जितने बड़े ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...