Wednesday, March 6, 2013

61 : ग़ज़ल - कमरे मिलते हैं



कमरे मिलते हैं घर नहीं मिलते ।।
खूब ढूँढो मगर नहीं मिलते ।।1।।
शोरगुल भाग दौड़ से खाली ,
आज कोई शहर नहीं मिलते ।।2।।
मुफ़्त नुस्खा ही लिख दें मुफ़्लिस को ,
ऐसे अब चारागर नहीं मिलते ।।3।।
दिल भी चेहरों से उजले रौशन हों ,
लोग अपने इधर नहीं मिलते ।।4।।
है गुनाहों का दौर क्यों ; क्या अब -
बददुआ में असर नहीं मिलते ?5।।
दोस्त अब हाथ भर मिलाते हैं ,
अब गले दौड़कर नहीं मिलते ।।6।।
क्या दवाओं की हम कहें यारों ,
अब निखालिस ज़हर नहीं मिलते ।।7।।
सब ज़बरदस्त दिखते बाहर से ,
अंदरूनी ज़बर नहीं मिलते ।।8।।
( मुफ़्लिस = ग़रीब ,चारागर = डॉक्टर , ज़बर = शक्तिशाली )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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