Tuesday, March 12, 2013

मुक्तक : 110 - पाँव में फटते ज्यों



पाँव में फटते ज्यों आ जाती हैं ज़ुराबें नई ।।
ख़त्म होते ही ढलतीं प्यालों में शराबें नई ।।
कोई पन्ने भी पलटता नहीं है उनके मगर ,
उनकी छप छप के चली आती हैं किताबें नई ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...