Thursday, March 7, 2013

मुक्तक : 87 - मेरे सूरज का


मेरे सूरज का सारा ही उजाला तम से ढक डाला ।।
मेरी इज्ज़त का झीना फाड़ जो जबरन वरक डाला ।।
भला किस मुँह से अपने देव को अब मैं करूँ अर्पित ,
चढ़ाने से ही पहले तुमने उसका भोग चख डाला ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...