Saturday, March 9, 2013

मुक्तक ; 93 - सारे ही जग से झगड़ूँ


सारे ही जग से झगड़ूँ कब उससे लड़ता हूँ ?
फिर भी उसकी आँखों में चुभता हूँ , गड़ता हूँ ।।
उसके पथ में फूलों सा मैंं रहता बिछ-बिछ कर ,
पर उसको लगता कंटक-रोड़ोंं सा अड़ता हूँ !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...