Sunday, March 10, 2013

65 : ग़ज़ल - हर काम के लिए



हर काम के लिए तो , तैयार हम रहे रे ।।
फ़िर भी तो मुद्दतों तक , बेकार हम रहे रे ।।1।।
वो चुस्ती-फुर्ती-ताक़त , अब हममें न बची क्यों ?
मुद्दत तक अस्पताली , बीमार हम रहे रे ।।2।।
लड़ने दिया न जब तक , दम में था दम उन्हें सच ,
दोनों के बीच चीनी - दीवार हम रहे रे ।।3।।
मिलते थे जिससे पुल वो , कल रात ढह गया था ,
उस पार रह गए वो , इस पार हम रहे रे ।।4।।
सदबार इश्क़ हमने , था आज़माया लेकिन ,
नाकाम इक दफ़्आ क्या , हर बार हम रहे रे ।।5।।
उसने गुनाह सारे , जब बख़्श ही दिए तो ,
ताउम्र उसके आगे , झुक यार हम रहे रे ।।6।।
वो थे हमें कुछ ऐसे , मछली को जैसे नदिया ,
उनके लिए कभी कब , दरकार हम रहे रे ।।7।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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