Wednesday, March 27, 2013

78 : ग़ज़ल - सफ़ेदी को कौओं में


सफ़ेदी को कौओं में क्यों ढूँढता है ?
तू पागल नहीं है तो फिर और क्या है ?
है तूफ़ान भी , आँँधियाँ भी लचक जा ,
तू क्यों टूट जाने उखड़ने खड़ा है ?
तू पथराई आँखों में क्या झाँकता है ,
तेरा ख़्वाब तब भी था अब भी बसा है ॥
ये सब ऐशोआराम का साज़ोसामाँ ,
तुझे खो के लगता है बेकार का है ॥
तू फ़िर ज़ोर कितना ही अपना लगा ले ,
न नज़रों में गिर कर कोई उठ सका है ॥
हाँ करना ही होगा इलाज अब तो हीरा
कि अब सर से पानी गुजरने लगा है ॥ 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति  

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