Saturday, March 9, 2013

64 : ग़ज़ल - उनसे रिश्ते


उनसे रिश्ते सुधर गये होते ॥
ज़ख्म जितने हैं भर गये होते ॥
याद में यूँ न मरते तिल-तिल के ,
गर बिछड़ते ही मर गये होते ॥
हमको होटल न यूँ लुभा लेती ,
काश हर रोज़ घर गये होते ॥
कौन परिवार पालता सच पे ,
ख़ुद को क़ुर्बाँ जो कर गये होते ॥
हम भी कर देते जो किया तुमने ,
गर गुनह से न डर गये होते ॥
हम तो हो जाते तुझसे भी काले ,
हम भी कालिख में गर गये होते ॥
नाख़ुदा से ही पार होना था ,
वरना हम ख़ुद ही तर गये होते ॥
होता ग़मनाक गर फ़साना तो ,
अश्क़ अब तक न झर गये होते ॥
( गुनह = पाप )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...