Thursday, March 14, 2013

मुक्तक : 115 - धूप से तो कभी


धूप से तो कभी लोहा गलता नहीं ।।
ग्लेशियर सर्दियों में पिघलता नहीं ।।
वो यक़ीनन बुरी तरह बेहोश था ,
उठके मुर्दा ज़मीं पर टहलता नहीं ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-02-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
आभार

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! दिलबाग विर्क जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...