Sunday, March 24, 2013

मुक्तक : 127 - जो कुछ भी था


जो कुछ था सब वो तेरी , वज़्ह दस्तयाब था ॥
नाकाम रह के भी मैं , सबसे कामयाब था ॥
दुश्मन मेरा तू क्या हुआ मैं प्यास हो गया ,
ग़ैरों की तिश्नगी को , भी जो शीरीं-आब था ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...