Wednesday, March 6, 2013

मुक्तक : 85 - कर कर कंघी



कर कर कंघी ज़ुल्फों वाला गंजा हो बैठा ॥
तक तक चम चम आँखों वाला अंधा हो बैठा ॥
सूरज बनने की चाहत में ख़ुद को आग लगा ,
बेचारा जुगनूँ बर्फ़ानी ठंडा हो बैठा ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 


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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...