कर कर कंघी ज़ुल्फों
वाला गंजा हो बैठा ॥
तक तक चम चम आँखों
वाला अंधा हो बैठा ॥
सूरज बनने की चाहत
में ख़ुद को आग लगा ,
बेचारा जुगनूँ
बर्फ़ानी ठंडा हो बैठा ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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