Friday, March 15, 2013

मुक्तक : 119 - मुफ़्त मिले तो


मुफ़्त मिले तो पीलूँ दारू भी मटका भर-भर कर ।।
गर ख़रीद पीना हो पानी तो न पिऊँ चुल्लू भर ।।
डॉलर-पौंड कमाऊँ ख़र्चा करूँ न इक रुपया भी ,
कपड़ा मिल का मालिक हूँ पर रहता हूँ मैं दिगंबर ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...