Monday, March 11, 2013

मुक्तक : 102 - जो तेरा हुस्ने सरापा


जो तेरा हुस्ने सरापा न आँखें खींच सका ।।
शर्बते इश्क़ उसका ख़ुश्क दिल न सींच सका ।।
तो ख़ता इसमें तेरी क्या जो वो तुझे न कभी ,
सख़्त तनहाई-ओ-ख़िल्वत में भी न भींच सका ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Unknown said...

वाह क्या बात है! बहुत खूब!

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Brijesh Singh जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

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