Sunday, March 24, 2013

73 : ग़ज़ल - रो-रो के अपने ग़म को


रो रो के अपने ग़म को सुनाने से फ़ायदा ?
हँसते हुओं को क्या है रुलाने से फ़ायदा ?
जिसमें न तारा चाँद न सूरज रहा कोई ,
मंजर उस आँख को क्या दिखाने से फ़ायदा ?
आराम का है काम औ' फिर वक़्त भी बहुत ,
फिर जल्दी , हाय-तौबा मचाने से फ़ायदा ?
हो जाए बिगड़ा कुछ जो मरम्मत से गर नया ,
फिर दूसरा ख़रीद के लाने से फ़ायदा ?
तेरे लिए ही तो वहाँ ताला पड़ा हुआ ,
उस दर पे घंटियों को बजाने से फ़ायदा ?
दो चार दिन में तय है अगर मर ही जाऊँगा ,
चारागरों को घर पे बुलाने से फ़ायदा ?
कॉलेज , अस्पताल , सरायें हैं लाज़मी ,
मंदिर क़दम क़दम पे बनाने से फ़ायदा ?
नुक़्साँ को ही तुम अपने अगर समझो फ़ायदा ,
फिर फ़ायदे की बात बताने से फ़ायदा ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...