बात कर कर के वो बड़ी से बड़ी ॥
मुझसे करते रहे हैं धोख़ाधड़ी ॥
यों मोहब्बत में मुझको फाँस लिया ,
यों मोहब्बत में मुझको फाँस लिया ,
जैसे जाले में मक्खी को मकड़ी
॥
प्यार जिसमें हुआ था उनसे
कभी ,
कोसते हैं वो सबसे प्यारी
घड़ी ॥
मेरी इज्ज़त से खेल कूद
की यों ,
उनकी भी तो गिरी उछल पगड़ी
॥
उसको इन्आम देके बैठ गए ,
देना जिसको सज़ा थी ख़ूब
कड़ी ॥
मौत जबसे पसंद की है अरे ,
ज़िंदगी हाथ धोके पीछे
पड़ी ॥
साथ उनके जो उड़ती फिरती रही ,
ज़िंदगानी बग़ैर उनके खड़ी
॥
ऐसे हालात में मरे कि उठा -
ना जनाज़ा , लगी न अश्क झड़ी
॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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