Tuesday, March 19, 2013

70 : ग़ज़ल - बात कर-कर के वो


बात कर कर के वो बड़ी से बड़ी ॥
मुझसे करते रहे हैं धोख़ाधड़ी ॥
यों मोहब्बत में मुझको फाँस लिया ,
जैसे जाले में मक्खी को मकड़ी ॥
प्यार जिसमें हुआ था उनसे कभी ,
कोसते हैं वो सबसे प्यारी घड़ी ॥
मेरी इज्ज़त से खेल कूद की यों ,
उनकी भी तो गिरी उछल पगड़ी ॥
उसको इन्आम देके बैठ गए ,
देना जिसको सज़ा थी ख़ूब कड़ी ॥
मौत जबसे पसंद की है अरे ,
ज़िंदगी हाथ धोके पीछे पड़ी ॥
साथ उनके जो उड़ती फिरती रही ,
ज़िंदगानी बग़ैर उनके खड़ी ॥
ऐसे हालात में मरे कि उठा -
ना जनाज़ा , लगी न अश्क झड़ी ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...