Saturday, March 2, 2013

मुक्तक : 81 - कितनी भी हो



कितनी भी हो तक्लीफ़ मगर तू न बिलबिला ॥
दिल लाख अश्क़बार सही फिर भी खिलखिला ॥
दुनिया को नापसंद हैं रोनी सी सूरतें ,
ताज़िंदगी लबों पे रख हँसी का सिलसिला ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...