Saturday, March 9, 2013

मुक्तक : 92 - फर्ज़ का निर्वाह


फर्ज़ का निर्वाह ही कर धर रहे हैं ।।
हक़ कहाँ अपना तलब हम कर रहे हैं ।।
'है यही इक राहे आख़िर' इस यक़ीं पर ,
आज तक जीने की ख़ातिर मर रहे हैं ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...