Wednesday, March 27, 2013

प्रतीक्षा गीत : 1 - तुम मुझे मत.................


तुम मुझे मत डराओ , ये मुमकिन नहीं ; कि डरकर मैं ये रहगुज़र छोड़ दूँ ॥
जब ये पग जानकर ही उठे इस तरफ़ कैसे मंज़िल को पाये बिगर मोड़ दूँ ?
इश्क़ की सब बलाओं से वाक़िफ़ हूँ मैं , क्या सितम है जफ़ा क्या है मालूम है ,
मुझको कोई नसीहत नहीं चाहिए , प्यार क्या है वफ़ा क्या है मालूम है ,
उनकी फ़ितरत सही बेवफ़ाई मगर मैं वफ़ाओं की क्योंकर क़दर छोड़ दूँ ?
जब ये पग जानकर ही उठे इस तरफ़ कैसे मंज़िल को पाये बिगर मोड़ दूँ ?
संगदिल हों कि हों दरियादिल वो सनम , मुझको उनकी तबीअत से क्या वास्ता ?
मेरी उल्फ़त की तासीर की रंगतें उनको दिखलाएंगीं फ़िर मेरा रास्ता ,
मुझको तज्वीज़ ये टुक गवारा नहीं ; मैं कहीं और दीगर जिगर जोड़ दूँ ॥
जब ये पग जानकर ही उठे इस तरफ़ कैसे मंज़िल को पाये बिगर मोड़ दूँ ?
इश्क़ के मैं हर इक इम्तिहाँ के लिए ख़ुद को बैठी हूँ तैयार करके यहाँ ,
ये अलग बात है बख़्त दे दे दग़ा ; अब भला ज़ोर क़िस्मत पे चलता कहाँ ?
दिल शिकस्ता जो भूले न भूलूँ उन्हें ; बेबसी में हो सकता है दम तोड़ दूँ ॥
जब ये पग जानकर ही उठे इस तरफ़ कैसे मंज़िल को पाये बिगर मोड़ दूँ ?
तुम मुझे मत डराओ , ये मुमकिन नहीं ; कि डरकर मैं ये रहगुज़र छोड़ दूँ ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर।।
पधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...

Ghanshyam kumar said...

बहुत सुन्दर...
जब ये पग जानकर ही उठे इस तरफ़ कैसे मंज़िल को पाए बिगर मोड़ दूँ...

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...