Monday, March 11, 2013

65 (B) : ग़ज़ल - होंगीं बस आज ऐशो


गुलशन की , बुलबुलों की , गुलफ़ाम की ही बातें ।।
होंगीं बस आज ऐशो आराम की ही बातें ।।1।।
फ़ुर्सत में हूँ लतीफ़े कह , सुन या फिर लड़ा गप,
मत कर तू आज हिंदू - इस्लाम की ही बातें ।।2।।
सूखे की रेगज़ारों की प्यास को भुलाकर ,
कर आज छलछलाते मै - जाम की ही बातें ।।3।।
पर्वा ज़माने भर की तू छोड़ बस अभी तो ,
सोच अपने फ़ायदे की निज काम की ही बातें ।।4।।
मत झोपड़ी के छप्पर-आँगन का ज़िक्र कर तू ,
कर आज महलों के फ़र्शो बाम की ही बातें ।।5।।
क़िस्सा-ए-ज़ौक़-ए-वस्ल अब तू छेड़ दे किसी का ,
कर हिज्र की न इश्क़े नाकाम की ही बातें ।।6।।
मत ज़िक्र बर्फ़ का कर सर्दी में तू यहाँ ,
कर चाय की , अलावों की , घाम की ही बातें ।।7।।
कह तो रहा हूँ मैं बेईमान नाँह हरगिज़ ,
साबित करो या फिर सब इल्ज़ाम की ही बातें ।।8।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

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