Friday, March 22, 2013

72 : ग़ज़ल - तुझे भूलकर भी


तुझे भूलकर भी , भुला ना सका हूँ ।।
मैं दिल से तुझे क्यों , हटा ना सका हूँ ?1।।
बहुत चाहा लेकिन , किसी भी तरह का ,
तेरा कोई भी ख़त , जला ना सका हूँ ।।2।।
नहीं बेवफ़ा पर , नहीं झूठ ये भी ,
मैं कोई भी वादा , निभा ना सका हूँ ।।3।।
मैं शर्मिंदा इतना , मेरे काम से हूँ ,
अभी भी झुका सर , उठा ना सका हूँ ।।4।।
ज़माना करे चाँद - सूरज की बातें ,
ज़मीं से मैं पीछा , छुड़ा ना सका हूँ ।।5।।
हूँ मैं ही सबब तेरे तक़्लीफ़ो-ग़म का ,
पर इल्ज़ाम ख़ुद को , लगा ना सका हूँ ।।6।।
मैं अश्कों को पीने , में माहिर नहीं बस ,
मैं सदमे से आँसू , गिरा ना सका हूँ ।।7।।
चले आओ तुम चार काँधों को लेकर ,
मैं जान अपनी अब के , बचा ना सका हूँ ।।8।।
बहुत चाहता था , जो तू चाहता था ,
मगर बन के मैं वो , दिखा ना सका हूँ ।।9।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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