Friday, March 29, 2013

मुक्तक : 131 - भूख जिसकी भी



भूख जिसकी भी लगे उसको मैं खाकर के रहूँ ।।

चाहता हूँ जो उसे हर हाल पाकर के रहूँ ।।

अब इसे ज़िद कहिए , कहिए ख़ब्त या मंज़िल की धुन ,

पाँव कट जाएँ तो मैं सिर को चलाकर के रहूँ ।।

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 


2 comments:

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर....होली की हार्दिक शुभकामनाएं ।।
पधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Pratibha Verma जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...