हवा को , पानी को मुट्ठी में
क़ैद कर लेना ,
या उँचे-उँचे पहाड़ अपने सर पे
धर लेना ,
ये मुझको सह्ल हैंं फूलों को सूँघने जैसे -
लगे मगर न मुमकिन उनके दिल
को हर लेना !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
■ चेतावनी : इस वेबसाइट पर प्रकाशित मेरी समस्त रचनाएँ पूर्णतः मौलिक हैं एवं इन पर मेरा स्वत्वाधिकार एवं प्रतिलिप्याधिकार ℗ & © है अतः किसी भी रचना को मेरी लिखित अनुमति के बिना किसी भी माध्यम में किसी भी प्रकार से प्रकाशित करना पूर्णतः ग़ैर क़ानूनी होगा । रचनाओं के साथ संलग्न चित्र स्वरचित / google search से साभार । -डॉ. हीरालाल प्रजापति
मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
5 comments:
sunder
Bahut khub
Gair mumkin hai vakai.....
Achchha hai.
धन्यवाद ! Rajeshyadav जी !
धन्यवाद ! rajeshyadav जी !
Post a Comment