Friday, March 8, 2013

मुक्तक : 91 - हवा को , पानी को


हवा को , पानी को मुट्ठी में क़ैद कर लेना ,
या उँचे-उँचे पहाड़ अपने सर पे धर लेना ,
ये मुझको सह्ल हैंं फूलों को सूँघने जैसे -
लगे मगर न मुमकिन उनके दिल को हर लेना !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...