हर ग़ज़ल का शे’र मत्ला' तड़फड़ाती जान है ॥
ये तेरा दीवान है या दर्दों
ग़म की खान है ॥
दिल में लाखों ग़म मगर चेहरे
पे छाई है हँसी ,
वाह रे तेरी अदाकारी पे दिल
क़ुर्बान है ॥
खनखनाती पुरक़शिश आवाज़ की
मैं क्या कहूँ ,
बोलता है तू तो बस लगता है बुलबुल गान है ॥
धीरे-धीरे तुझको भी आ जाएगा
इसका यक़ीं ,
प्यार भी बिकता है वो इक
चीज़ है , सामान है ॥
ख़ूबरूई , बाँकपन , मासूमियत की ओट में ,
दरहक़ीक़त बारहा रहता छुपा शैतान है ॥
पूछ मत इस सूट के इस बूट के अंदर का राज़ ,
दरहक़ीक़त बारहा रहता छुपा शैतान है ॥
पूछ मत इस सूट के इस बूट के अंदर का राज़ ,
छेद मोज़ों में फटी चड्डी
छनी बानियान है ॥
आजकल तो भीड़ में भी लुट रहे
हैं लोग बाग ,
रख ले कुछ हथियार वो रस्ता
बड़ा सुनसान है ॥
उसकी नज़रों में भी देखा है हवस को झूमते ,
आजकल के दौर में जो पूजता
हनुमान है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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