Wednesday, March 13, 2013

66 - ग़ज़ल : हर ग़ज़ल का शे'र


हर ग़ज़ल का शेर मत्ला' तड़फड़ाती जान है ॥
ये तेरा दीवान है या दर्दों ग़म की खान है ॥
दिल में लाखों ग़म मगर चेहरे पे छाई है हँसी ,
वाह रे तेरी अदाकारी पे दिल क़ुर्बान है ॥
खनखनाती पुरक़शिश आवाज़ की मैं क्या कहूँ ,
बोलता है तू तो बस लगता है बुलबुल गान है ॥
धीरे-धीरे तुझको भी आ जाएगा इसका यक़ीं ,
प्यार भी बिकता है वो इक चीज़ है , सामान है ॥
ख़ूबरूई , बाँकपन , मासूमियत की ओट में , 
दरहक़ीक़त बारहा रहता छुपा शैतान है ॥
पूछ मत इस सूट के इस बूट के अंदर का राज़ ,
छेद मोज़ों में फटी चड्डी छनी बानियान है ॥
आजकल तो भीड़ में भी लुट रहे हैं लोग बाग ,
रख ले कुछ हथियार वो रस्ता बड़ा सुनसान है ॥
उसकी नज़रों में भी देखा है हवस को झूमते ,
आजकल के दौर में जो पूजता हनुमान है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

1 comment:

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...