Friday, March 8, 2013

63 : ग़ज़ल - आज बदल कर


आज बदल कर मैं ख़ुद को रख डालूँगा ।।
जो न कभी था मुझमें वो - वो पालूँगा ।।1।।
कल , कल , कल , कल करते उम्र बहुत खो दी ,
आज का कुछ भी अब कल पर ना टालूँगा ।।2।।
दिन आए आराम किए बिन चलने के ,
राहों पे चलते - चलते सुस्ता लूँगा ।।3।।
कैसे गिरने दूँ उसको वो मेरा है ,
मैं ख़ुद गिर - गिर कर भी उसको सँभालूँगा ।।4।।
उन आँखों के जाम मुहैया हैं जब तक ,
मैख़ाने की आँख में आँख न डालूँगा ।।5।।
दुश्मन के अमृत का प्याला भी न छुऊँ ,
यारों के हाथों से ज़हर भी खा लूँगा ।।6।।
गुस्से में आकर जिनको ठुकराया है ,
गर कर दें वो माफ़ तो फिर अपना लूँगा ।।7।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

4 comments:

Urmila Madhav said...

gud...

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Urmila Madhav जी !

Unknown said...

बहुत ही उम्दा रचना मित्रवर

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! JAGDISH PANDEY ALLAHABAD जी !

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