आज बदल कर मैं ख़ुद को
रख डालूँगा ।।
जो न कभी था मुझमें वो - वो पालूँगा ।।1।।
कल , कल , कल , कल करते उम्र बहुत खो दी ,
आज का कुछ भी अब कल पर ना टालूँगा ।।2।।
दिन आए आराम किए बिन
चलने के ,
राहों पे चलते - चलते
सुस्ता लूँगा ।।3।।
कैसे गिरने दूँ उसको
वो मेरा है ,
मैं ख़ुद गिर - गिर कर भी उसको सँभालूँगा ।।4।।
उन आँखों के जाम मुहैया
हैं जब तक ,
मैख़ाने की आँख में आँख
न डालूँगा ।।5।।
दुश्मन के अमृत का प्याला भी न छुऊँ ,
यारों के हाथों से ज़हर भी खा लूँगा ।।6।।
गुस्से में आकर जिनको
ठुकराया है ,
गर कर दें वो माफ़ तो फिर अपना लूँगा ।।7।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
4 comments:
gud...
धन्यवाद ! Urmila Madhav जी !
बहुत ही उम्दा रचना मित्रवर
धन्यवाद ! JAGDISH PANDEY ALLAHABAD जी !
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