सर जो पत्थर से ये टकरा के
फट गया होता ।।
ज़िंदगानी का ये झंझट निपट
गया होता ।।1।।
मैं भी जो तेरा बुरा चाहने
लगा होता ,
सर तेरा काँधे से चुटकी में
हट गया होता ।।2।।
तुझसे आता है सनम मुझको हारने
में मज़ा ,
वर्ना इक फूँक से पासा पलट
गया होता ।।3।।
बेवफ़ा मुझको चिढ़ाने पे क्यों
तुला है तू ,
चाहता ग़ैर को तो कब का पट
गया होता ।।4।।
हर तरफ़ घूम रहे साँप , लोमड़ी , गीदड़ ,
काश ये शह्र न जंगल से सट
गया होता ।।5।।
ऐसी फिसलन पे तेरे पाँव पड़ चुके थे गर ,
मैं बचाता जो तुझे ख़ुद रिपट
गया होता ।।6।।
वो जो आए न अगर एन वक़्त पर होते
,
कुछ न कुछ हादसा सचमुच ही घट
गया होता ।।7।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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