Sunday, March 17, 2013

69 : ग़ज़ल - छोटे-बड़े सब इंसानों के


छोटे-बड़े सब इंसानों के , अपने सपने होते हैं ।।
रहते ज़ियादातर के अधूरे , कुछ के ही पूरे होते हैं ।।1।।
जो दिखता है बस उसकी ही , वाह किया करती दुनिया ,
सिर्फ़ कलश की बात हो याँ कब , नींव के चर्चे होते हैं ।।2।।
हमने तो अब उनमें भी तहजीब नदारद ही देखी ,
जो ऊँचे-ऊँचे मशहूर , घराने वाले होते हैं ।।3।।
मंदिर और मज़ार सड़क के , ठीक किनारे होने से ,
कई टकराव चलाते वाहन , शीश नवाते होते हैं ।।4।।
पहले वो सिंदूरी पत्थर , कायम करते एक जगह ,
फिर यूँ ही इक-इक जा उनके , बेजा कब्ज़े होते हैं ।।5।।
कुछ लंगूर परी रू बीवी , के होते तो हैं मालिक ,
पर जैसे वो उसके चौक़ीदार सरीख़े होते हैं ।।6।।
आज अभी हो जाने वाले , टलते हफ़्ते-महीनों पे ,
वक़्त पे काम कहाँ सरकारी , आसानी से होते हैं ।।7।।
मज़्दूरों के ख़ून की क़ीमत , होती है पानी जैसी ,
नामावर लोगों के पसीने , इत्र से महँगे होते हैं ।।8।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...