Tuesday, March 5, 2013

60 : ग़ज़ल - घर में जो मेरे दुश्मन



घर में जो मेरे दुश्मन , ने आग क्या लगा दी ?
तुमने हवाओं अपनी , रफ़्तार ही बढ़ा दी ।।1।।
देकर बयान अपना , बस चश्मदीद बैठे ,
मुंसिफ़ ने बेगुनह को , चट क़ैद की सज़ा दी ।।2।। 
आसाँ मुआमले कब , होते हैं कचहरी के ,
मैंने यूँ ही न थाने , जाकर रपट लिखा दी ।।3।।
खाने तलक के लाले , पड़ जाएँगे जो सारी ,
मैंने रकम उधारी , की आज ही चुका दी ।।4।।
पीता नहीं हूँ लेकिन , यारों ने आज मुझको ,
अपनी मोहब्बतों की , देके क़सम पिला दी ।।5।।
बस इक अमीर मुझको , इस दुनिया में गिना दो ,
अपनी कमाई जिसने , ग़ैरों पे सब लुटा दी ।।6।।
सरकारी नौकरों पे , महँगाई का असर क्या ?
मजदूर की तो इसने , बस वाट ही लगा दी ।।7।।
उसको लगाने फिर से , हम पार चल दिए हैं ,
जिसने कि बारहा ही , कश्ती मेरी डुबा दी ।।8।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...