Thursday, March 7, 2013

मुक्तक : 86 - इतना बुलंद



इतना बुलंद उसको दस्तयाब है मक़ाम ।।
नीची हैंं उसके आगे ऊँची मंज़िलें तमाम ।।
उसको तो लाज़िमी न तारे , सूरज और चाँद ,
इतने हैं उसपे रोशनी के पुख़्ता इंतिज़ाम ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...