Monday, March 11, 2013

मुक्तक : 103 - इंसान ही न रहते



( चित्र Google Search से साभार )

इंसान ही न तड़पें मोहब्बत को बेशुमार ।।
सब जानवर परिंदे भी उल्फ़त के हैं शिकार ।।
सबकी ही हक़ीक़त है आश्नाई-इश्क़-प्रेम ,
दुनिया को तो चलाने ज़रुरी है जिस्मी-प्यार ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...