Thursday, March 14, 2013

मुक्तक : 114 - सब कुछ ठोस


सब कुछ ठोस कठोर ही न हो 
कुछ निश्चित तारल्य भी हो ।।
जीवन में कठिनाई रहे पर 
थोड़ा तो सारल्य भी हो ।।
मैं कब केवल अभिलाषी हूँ 
अमृत घट का हे ईश्वर ,
प्रत्युत उसमें औषधि जितना 
स्वयं कहूँ गारल्य भी हो ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

3 comments:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! sriram जी !

mass said...

ग़ज़ब का शब्द माधुर्य है

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! mass जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...