Thursday, March 14, 2013

मुक्तक : 117 - सजावट के बिना


सजावट के बिना भी वो ज़माने को लुभाती है ।।
बड़ी ख़ामोशियों के साथ दुनिया को बुलाती है ।।
अजब है वो ग़ज़ब की ग़मज़दा जो दर्द में भीगी ,
कुछ ऐसे खिलखिलाती है कि पत्थर को रुलाती है ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...