उन्हें प्यार मैं जब से करने
लगा हूँ ।।
यक़ीनन ही कुछ-कुछ बदलने लगा
हूँ ।।1।।
धुआँ कर रहा था मैं तनहाइयों में ,
सरे बज़्म आकर धधकने लगा हूँ ।।2।।
बहुत डर के चलता था हालात
से मैं ,
अब इन शेर-चीतों से लड़ने
लगा हूँ ।।3।।
मेरी कट गईं जब से दोनों
ही टाँगें ,
मैं अब और भी तेज़ चलने लगा
हूँ ।।4।।
नहीं मिल रही जब दवा ही कहीं
से ,
दवा दर्द को ही समझने लगा
हूँ ।।5।।
बहुत शुक्रिया उनकी फ़र्माइशों
का ,
निठल्ला कमाने निकलने लगा
हूँ ।।6।।
न थे ग़म तो मैं शे’र कह पाता कैसे ,
पर अब शे‘र पर शे’र कहने लगा हूँ ।।7।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
4 comments:
बहुत सुन्दर!
धन्यवाद ! Brijesh Singh जी !
लाजवाब !!
धन्यवाद ! Lekhika 'Pari M Shlok' जी !
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