तभी हाले दिल मेरा भी उनको पता चले ॥
कभी डाकिया.....................................
उनकी निगाह में यों देखा
है सब मगर ,
मेरा ही ख़्वाब अब तक आया
नहीं नज़र ,
कब आएगा वो जाने मेरी नज़र तले ॥
कभी डाकिया.....................................
तभी हाले दिल मेरा भी उनको पता चले ॥
मेरे ही आग अकेले दिल में
लगी यहाँ ,
आँच अब तलक तो इसकी पहुँची
नहीं वहाँ ,
मुझे इंतज़ार है कब वाँ पे
शमा जले ॥
कभी डाकिया.....................................
तभी हाले दिल उन्हें भी मेरा पता चले ॥
मशरूफ़ियत में सब के जैसे
बिताऊँ मैं ,
फ़ुरसत के पल मगर ये कैसे
बिताऊँ मैं ,
दिन गर गुज़ार लूँ पर फिर शाम ना ढले ॥
कभी डाकिया.....................................
तभी हाले दिल मेरा भी उनको पता चले ॥
घुटता रहूँ मैं यूँ ही दिल
की नक़ाब में ,
ऐसा न हो कहीं बस ख़्वाबों
ही ख़्वाब में ,
ये सिलसिला मिलन का चलता
चला चले ॥
कभी डाकिया.....................................
तभी हाले दिल मेरा भी उनको पता चले ॥
कभी डाकिया जो................................
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
2 comments:
Bahut sundar geet hai. Dr sahab namaskar
धन्यवाद ! shishirkumar जी !
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