Wednesday, March 13, 2013

मुक्तक : 112 - दिल के टूटे तार



दिल के टूटे तार में आँसू के हर मोती की ठेल ।।
गीत लिखना या ग़ज़ल कहना नहीं बच्चों का खेल ।।
कब सरल होते गठित करने ये लय, तुक, तान , शिल्प ,
अच्छे-अच्छों के दिमाग़ों का निकल जाता है तेल ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

बृजेश नीरज said...

Beautiful!
Join this site-http://voice-brijesh.blogspot.com

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Brijesh Singh जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...