तुझपे अपने लुत्फ़ चुन-चुनकर लुटाऊँगा सभी ।।
तेरे ग़म सर पर अकेले ही उठाऊँँगा सभी ।।1।।
अपनी सूरत से बुरी सूरत नहींं देखी मगर ,
आईने हरगिज़ न दुनिया के हटाऊँँगा सभी ।।2।।
तूने कर
ली ग़ैर से शादी न डर आशिक़ हूँ मैं ,
तेरी ख़्वाहिश है तो तेरे ख़त जलाऊँँगा सभी ।।3।।
हूँ बहुत दुश्नाम अब सरनाम होने के लिए ,
दाग़ माथे के मैं मिटकर भी मिटाऊँँगा सभी ।।4।।
छोड़ दे तू पूछना मैं वक़्त पर खुद ही तुझे ,
कुछ न छोडूँँगा वो बातें भी बताऊँँगा सभी ।।5।।
तूने माना है तहेदिल से मुझे उस्ताद तो ,
मैं भी जो कुछ जानता हूँ वो सिखाऊँँगा सभी ।।6।।
तू न बेजा फ़ायदा आज़ादियों का ले अगर ,
बंदिशें तुझ पर लगीं फ़ौरन हटाऊँँगा सभी ।।7।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
8 comments:
धन्यवाद ! sriram जी !
बहुत सुन्दर अभिव्यति दी है प्रजापति जी ...बधाई
धन्यवाद ! bholanath navgeetkar जी !
वाह खुबसूरत गजल
धन्यवाद ! सरिता भाटिया जी !
बेहतेरीन सर जी
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