Friday, April 26, 2013

मुक्तक : 181 - हँस के सिर आँखों पे


हँस के सिर आँखों पे , उठायी ही क्यों जाती है ?
जब बुरी है तो फ़िर , बनायी ही क्यों जाती है ?
गर है नापाक़ ये , शराब तो फिर बतलाओ ,
पीयी जाती है और , पिलायी ही क्यों जाती है ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...