Wednesday, April 17, 2013

मुक्तक : 167 - रात-रात भर


रात-रात भर जाग जाग कर यों न भोर तू कर ॥
निर्निमेष मत अपनी दृष्टि आकाश ओर तू कर ॥
प्रीति सत्य और अति पुनीत है शंकहीन तेरी ,
व्यर्थ परिश्रम चंद्र प्राप्ति का मत चकोर तू कर ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति  

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...