Tuesday, April 30, 2013

मुक्तक : 187 - सचमुच विनम्रता


सचमुच विनम्रता तो जैसे खो गई ॥
अहमण्यता प्रधान सबमें हो गई ॥
दिन रात हम में स्वार्थ जागता गया ,
परहित की भावना दुबक के सो गई ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...