Wednesday, May 1, 2013

मुक्तक : 188 - दुश्मन भी हमसे


दुश्मन भी हमसे बनके हमेशा सगा मिला ॥
हमको कभी वफ़ा न मिली बस दग़ा मिला ॥
जिस दिल को भी चुराने चले शब-ए-स्याह हम ,
उस रोज़ सारी-सारी रात वो जगा मिला ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

1 comment:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत बहुत धन्यवाद ! श्रीराम रॉय जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...