Thursday, May 9, 2013

मुक्तक : 201 - कभी दिल में


कभी दिल में हमें उनके ठिकाना रोज़ मिलता था ॥
जगह तकियों की बाहों का सिरहाना रोज़ मिलता था ॥
इधर कुछ रोज़ से क्या हाथ अपना तंग हो बैठा ,
नहीं मिलता कभी अब वो जो जानाँ रोज़ मिलता था ॥
(जानाँ=महबूब ,प्रेमपात्र)
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...