Wednesday, May 22, 2013

मुक्तक : 226 - क़िस्म क़िस्म की


क़िस्म क़िस्म की नई नई वह साजिश रोज़ रचे ॥
मुझ पर क़ातिल घात लगाए कैसे जान बचे ?
वो पैनी तलवार लिए मैं नाजुक सी गर्दन ,
देखें बकरे की माँ कब तक ख़ैर मनाए नचे ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...